अदृश्य बंधन की गूंज

 अदृश्य बंधन की गूंज

डॉ. नीलू नीलपरी

कभी-कभी, जीवन के इस अथाह समंदर में, हमारी आत्मा अदृश्य बंधनों के उस कंपन को महसूस करती है, जो हमें उन लोगों से जोड़ता है जो हमारे अपने होते हैं। यह बंधन भले ही दिखाई न दें, लेकिन उनकी गूंज हमारे मन की गहराइयों में हमेशा रहती है। यह गूंज हमें उन रिश्तों की याद दिलाती है, जो समय और दूरी से परे, हमारी भावनाओं के धरातल पर अमिट छाप छोड़ते हैं।

यह कविता अदृश्य बंधन की गूंज उन्हीं अनकहे शब्दों, अनछुए भावों, और अनदेखे रिश्तों का प्रतिबिंब है। यह उन भावनाओं का उत्सव है, जो हमारे हृदय में अनंत काल तक जीवित रहती हैं और हमें यह अहसास कराती हैं कि सच्चे रिश्ते कभी खत्म नहीं होते।

यह कविता जीवन के उन कोनों को रोशन करती है जहां हमारे अपने, हमारी आत्मा का हिस्सा बनकर हमेशा रहते हैं।

सूने फ्रेम
सूने कोने
वैसे ही खाली रह जाते हैं,
जैसे एक बंद दरवाजा,
जो भीतर छिपा लेता है
उन अपनों को,
जो सिर्फ हमारे होते हैं।
जिन्हें देखते हैं हम,
गाहे- बगाहे कथोपकथन करते
और अकेला छोड़ जाने पर
मौन द्वंद्व में फंस जाते।

एक प्यारा सा रिश्ता,
जो सृष्टि के आदि से अंत तक,
एक इंद्रधनुष सा झूलता
अपनी रंगत बिखेरता
उस आंसू की बूंद पर,
जो पलकों पर ठहरकर
बेजान कर जाती है।
जैसे पिंजरे से आज़ाद होने को
तड़पता फड़फड़ाता एक परिंदा।

Life&More

News, Lifestyle & Entertainment stories - all at one place

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!