उठकर लल्लू राम सवेरे I
झेल रहे लॉक डाउन के झमेले II
पत्नी ने झाड़ू पकड़ाई I
बोली घर की करो सफाई II
तुमने कभी क्या नहीं यह सोचा I
हफ्ते से नहीं लगा है पोछा II
कितना गन्दा पड़ा बिछौना I
झाड़ो कमरे का कोना कोना II
सबसे पहले झाड़ू मारो I
कुछ तो घर की शकल निखारो II
फिर पोछे का नंबर लाओ I
एक एक काम निपटाओ II
ऐ.सी, पंखों की करो सफाई I
देता गंद क्या नहीं दिखाई II
दीवारों पर लगे है जाले I
सोच रहे क्या कौन निकाले II
बाहर ‘क्यारी’ की हालत देखो I
अपनी सुस्ती की आदत देखो II
पौधों में देना है पानी I
रोज़ रोज़ की यही कहानी II
अपने मन से करो कभी कुछ I
अभी पड़ा है काम सभी कुछ II
जब देखो तब लेटे रहते I
थक गयी मैं तो कहते-कहते II
‘वूलेन’ कपड़ों में धूप लगाओ I
आलस छोड़ो काम निबटाओ II
अभी ‘किचन’ का काम पड़ा है I
आटा मैंने नहीं मढ़ा है II
सड़ी-गली सब सब्ज़ी छांटो I
तोरई, भिंडी, आलू काटो II
ज़्यादा नहीं थोड़े हैं कपड़े I
तुम्हारे लिए छोड़े हैं कपड़े II
धोकर जल्द सुखाओ इनको l
बाहर जाकर फैलाओ इनको II
ये सब काम करो सब पूरा I
रह न जाए कोई अधूरा II
मुझे न तुम अब ‘डिस्टर्ब’ करना I
मेरे ‘रूम’ में पैर न धरना II
मैं कोई काम नहीं कर पाती I
टी वी पर जब रामायण आती II
मेरे काम में हाथ बटाओ I
खुद अच्छे ‘हस्बैंड’ कहाओ II
— प्रमोद लायटू