सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- “यौन प्राथमिकता बायोलॉजिकल और प्राकृतिक है. इसमें किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन होगा. निजता किसी की भी व्यक्तिगत पसंद होती है. दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंध पर IPC की धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार, यानी अनुच्छेद 14 का हनन करती है.” LGBTQ समुदाय के तहत लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेडर और क्वीयर आते हैं।
माना कि जीने का अधिकार सबको है, खुश रहने का भी,समलैंगिकता अपराध नहीं और सबकी निजता का स्वागत भी, फिर भी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अपने साथ बहुत सी मुसीबतों को बढ़ावा देगा जिसको अभी हम नज़रंदाज़ कर रहे हैं। अमेरिका में वैसे भी स्वछंदता है, यौन अपराध इतने नहीं जितने अपने देश मे, इसलिए कोई भी फैसला समाज की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए ही होना चाहिए। मेरी आशंका है…
◆ बाल यौन अत्याचार के मामले और बढ़ेंगे
◆ विवाह की संस्था में आस्था कम होगी
◆ छात्राओं को स्कूल से बड़ी उम्र की महिला परिचित के साथ भेजना भी खतरे से खाली नहीं।
◆ लड़कों पर भी यही खतरा, बड़े लड़कों के साथ लड़कों को भेजने में भी डर
◆ ओनली गर्ल्स या बॉयज ओनली स्कूल कालेजों में भी सतर्कता बढ़ानी पड़ेगी
◆ डाइवोर्स केस बढ़ेंगे
◆ जो लड़कियां ससुराल या पति की डरावनी छवि से अविवाहिता रहना पसंद करती हैं अब समलैंगिक विवाह में ज़िन्दगी खोजेंगी
◆ गे बार और होटल व्यवसाय में बढ़ोतरी होगी, दिल्ली के ललित होटल में खुशियों की लहर इसका उदाहरण है।
नीलू ‘नीलपरी’ व्याख्याता, मनोवैज्ञानिक, लेखिका, कवयित्री, संपादिका हैं