परिवर्तन – सृष्टि का नियम

विश्व शांति दिवस 21 सितंबर पर सादर समर्पित

जिंदगी पल पल बदल रही है। परिवर्तन ही सृष्टि का नियम सदा से रहा है। एक पल में जाने क्या क्या बदल जाने वाला है। जो आज अपना है कल एक झटके में ख़ाक हो जाने वाला है। तो किस गुरुर में रहते हैं हम? अपने से नीचे वर्ग को देखें, दुखी दरिद्र खुले आकाश, बिना संसाधनों के भी चैन की नींद सोते हैं और हमको ए.सी. कमरे में भी अभाव ही अभाव नज़र आता है। ये मानव ने अपनी इच्छाओं की चादर फैला रखी है जिसका कोई छोर नहीं, अंतहीन आकांक्षाएं। भागते जाएँ पर ज़मीन का कोई सिरा हाथ नहीं लगता। फिर क्यों ये चकाचौंध के पीछे भागने का अंधानुकरण, क्यों ये मारामारी, हाय-तौबा, झूठ, छल-कपट, चोरी-बेईमानी? अपने ज़मीर को मार दूसरे के हक़ की छीना-झपटी? जब जीवन ही क्षणभंगुर, फिर क्यों न अपनी लालसाओं को भी विराम दें। कुछ आत्मचिंतन, मनन करें और देश, जाति, काल की परिभाषाएं भूल विश्वशांति और प्रेम-भाईचारे के नए आयाम गढ़ें। भूमंडलीकृत समाज का निर्माण करें जिसमें पड़ोसी ही पड़ोसी का सहारा बने। औपनिवेशिक काल से सबक ले राष्ट्रप्रेम और विश्वप्रेम को अपना लक्ष्य बनाएं। लकीरों में बंटा ग्लोब मुट्ठी में समा न जाए तो कहना। मानो तो सुख, वर्ना जीवन तो ‘मैं’ के फेर में गुज़र ही जाना है।

इसी सोच से उपजी एक कविता जो कल ई-रिक्शा में जाते स्वतः ही फूट पड़ी..

भिखारी

हर एक भगवान की फोटो
बना के अपना हेडरेस्ट
मैली कुचैली एक गठरी को
अपना तकिया बना
लेटा है वो मेट्रो पुल की
पटरी के नीचे
रोड़ी, मिटटी, पत्थरों के
किंगसाइज़ बेड पर
धूप आंधी बारिश से बेखबर
दिल-दिमाग-आत्मा उसकी शांत
बाँट रहा कुत्तों संग
रात की बची रोटी
फटी कमीज़, फ़टी पैंट
बढ़ी दाढ़ी, मिटटी सने बाल
आते जाते मखोल उड़ाते
कहते हैं उसको
चल भाग, साला भिखारी
चोर, साला बेवड़ा..

बेवड़ा वो असहाय प्राणी  है
या हमारी मानसिकता ?
भिखारी, खोखला तो
आज हुआ समाज है
उस बेचारे को फिर भी
भगवान में आस्था, विश्वास है
चोर तो हम हैं, टैक्स चोर, कामचोर
भूखे भेड़िये तो हम हैं
पैसे के, शोहरत के, हवस के भूखे
अपंग तो हमारी नीतियां हैं हुई
वो तो हालात का शिकार हुआ,
है किस्मत का मारा,
बेचारा…

तो जो आज खुद को दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर देख, हम राजा हैं सोचते हैं, कालचक्र के पहिये में घूमते कल रंक बन कब धरा पर आ जाएं कह नहीं सकते।  रेत के महल ढहते वक़्त नहीं लगता। झूठे गुरूर, दंभ के चश्मे हटा कायनात के हर जीव से निस्वार्थ प्रेम ही विश्व-शांति की राह का पहला मील का पत्थर है। मदर टेरेसा, पूर्व राष्ट्रपति ऐ पी जे अब्दुल कलाम जी इस सोच के वंदनीय पुजारी हैं।  कलाम साब के साथ बिताये हुए कुछ अविस्मरणीय पल एक यादगार हैं उम्रभर की। कलाम साब से एक बार मिलकर ही देश भक्ति और कर्म प्रधान जीवन की नींव रख ली थी मैंने। उनको समर्पित कुछ शब्दपुष्प..

 

मिसाइल मैन

कुछ व्यक्तित्व सिर्फ जिस्म नहीं
जान होते हैं, मिसाल होते हैं
जो चले तो जाते हैं दुनिया से
रूह से कौन भुला पाया उनको
आप करोड़ों के दिलों पर सदा
राज करते थे, करते हो, करते रहोगे
कलाम सर, ओ मिसाइल मैन,
आप चले गए तो ये लगा
देश ने क्या खोया क्या पाया
कुछ तमन्ना अब भी रही बाकी
ये देश मांगे आप जैसे करिश्माई

नेकदिल-बुद्धिजीवी,और बहुत से कलाम..
न मंदिर, न मस्जिद, न राम न अल्लाह
करते सरस्वती की आराधना आप सदा
चट्टान से भी अडिग, मज़बूत इरादों वाले
बसते हो मुल्क के दिल-औ-रूह में आप
बन देशभक्ति की अमिट, अनूठी मिसाल
‘सपने वो नहीं जो सोते हुए देखे जाएँ,
सपने वो हैं जो नींदें उड़ा दें’
कहने वाले, कलाम साब!
आपको बारम्बार सलाम
पीपल्स प्रेजिडेंट कलाम सर आपको
‘नीलपरी’ का शत शत नमन..!

(चित्रों में मैं ‘नीलपरी’ और गिटार पर बेटा रचित )
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