दुविधा

 दुविधा

करवाचौथ पर उन नारियों के समक्ष दुविधा जिनके पति उनके लिए “परमेश्वर” न बन सके….!!!!!!!

कहीं जिस्म पर हैं
अनेकों नीले-काले घाव
कहीं दिल औ आत्मा
छलनी-लहुलुहान
फिर भी हर पतिव्रता
भारतीय ब्याहता नारी
करे हर वर्ष कार्तिक में
करवाचौथ का निर्वाह
स्वयं भूखे पेट दिनभर
बाट निहारे पूर्ण चन्द्र औ
व्यसनी पति-परमेश्वर की
चंदा को साक्षी कर सुन्दरी
करे कामना हर जनम मिले
पति रूप मुझे उसका साथ
आकाश के चाँद में छलनी में
व्रती नार देखे अपना चाँद
जब इतने दाग चंद्रमा में
मेरा पति थोड़ा मनमौजी
पर यही तो मेरा परमेश्वर
चाहे दिनभर भूख मिटाए कहीं
रात तो घर लौट आता है
करवाचौथ व्रत कैसे न करूँ
जब विवाहिता धर्म मेरा यही
मैं मूक तुच्छ अबला नारी
और कहलाना चाहती
पतिव्रता सामाजिक प्राणी
फिर कैसे, क्यूँ तोड़ूं
मैं सदियों पुरानी परिपाटी
गहन दुविधा में सोचती
क्या करूँ अब मैं बेचारी…..
नीलू ‘नीलपरी’ व्याख्याता, मनोवैज्ञानिक, लेखिका, कवयित्री, संपादिका हैं

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